अंधेरा था
और तुम चुपचाप बैठे थे
सिर्फ सन्नाटा ही सन्नाटा था
आंसू टपक रहे थे
कमीज़ गीली हो रही थी
सिर्फ मायुसी थी
किस्मत ज़िन्दगी खुशियों उम्मीदों को ग्रहण लगा था
तब तुम्हारे कंधे पे किसी ने हाथ रखा
अचानक से ये अहसास हुआ कि कोई है
जो तुम्हारी फ़िक्र करता है
उसने बे मतलब ही तुम्हारे आँसू पोंछ दिया
तुमको गले से लगाया और बोला
मुझे ये नही पता क्या कारण है
मुझे शायद इसमें दिलचस्पी भी नहीं है
पर शायद तुमको देख के लगा
मुझे आगे आके तुम्हारे कंधे पे हाथ रखना चाहिए तुमको अच्छा लगेगा
शायद तुम्हारे आंसू भी पोंछने चाहिए
ओर गले लगा के ये भी बोलना चाहिए
कि सब ठीक हो जायेगा
ना ना वो कोई सगा वाला नहीं था
कोई खून का रिश्ता भी नहीं था
वो न मेरा भाई था, न मेरा दोस्त,
न हमउम्र …और न ही मेरा प्यार
न वो मेरे जाति का था
न ही मेरे धर्म का
पर शायद वो इंसान था
और शायद यही सच्ची इंसानियत थी
जो गुम हो गयी है ,कहीं खो गयी है
न वो कहीं मंदिरों में मिलती है
न ही कोई मस्जिदों मे
और न ही ऊपर वाले के किसी भी आशियाने मे
वो एक पल में इंसानियत का पाठ पढ़ा गया
अपने और पराए में भेद सिखला गया…
behtarin rachna…….bilkul sach kaha apne……
न वो कहीं मंदिरों में मिलती है
न ही कोई मस्जिदों मे
और न ही ऊपर वाले के किसी भी आशियाने मे
वो एक पल में इंसानियत का पाठ पढ़ा गया
अपने और पराए में भेद सिखला गया…
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Thank u madhusudan ji
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