ज़िंदगी तेरी फ़ितरत क्या है
कभी तो मासूम थी
कभी मनचली भी
क्या हुआ तुझे
क्यूं मुँह मोड़ा तुने
क्या ग़लती हुई मुझसे
जरा बता मुझे
ज़िन्दगी तेरी फ़ितरत क्या है
कभी मेहरबान थी
अब क्यूँ है ख़फा
शोर भी अब सन्नाटा है
हौसलों में अब खामोशी है
मुस्कराहटें भी अब झूठी है
क्या ग़लती हुई मुझसे
जरा बता मुझे
ज़िन्दगी तेरी फ़ितरत क्या है
अपने पराये हो गये
इश्क़ मुकामिल न रहा
सारे सही ग़लत हो गये
और ग़लत सारे सही
अब धुंध है सन्नाटा है और सिर्फ है मायूसी
क्या ग़लती हुई मुझसे
जरा बता मुझे
ज़िन्दगी तेरी फ़ितरत क्या है
अब खुद को ढूंढ रहा हूँ
कभी अंदर कभी बाहर
कभी ध्यान में कभी भगवान में
कभी मंजिलों में कभी रास्तों मे
कुछ तो रहम कर
क्या ग़लती हुई मुझसे
जरा बता मुझे