अपनी परछाइयाँ ढूंढने चला हूँ मैं
कोई बतलायेगा कि कहाँ जाना है मुझे
सरसों के खेतों में या
रेगिस्तान के रेतों में
बचपन के खेलों में या
छुक-छुक करती रेलों में
कोयल के गानों में या
पतंग के इठलाने में
अपनी परछाइयाँ ढूंढने चला हूँ मैं
कोई बतलायेगा कि कहाँ जाना है मुझे
माँ के प्यार में या
पापा के दुलार में
बहनों के पुचकार में या
भाइयों के ललकार में
अपनी परछाइयाँ ढूंढने चला हूँ मैं
कोई बतलायेगा कि कहाँ जाना है मुझे
उमंग में, हुड़दंग में या
जीवन के रंग में
शोर में, जोर में
या प्यार की डोर में
अपनी परछाइयाँ ढूंढने चला हूँ मैं
कोई बतलायेगा कि कहाँ जाना है मुझे
समय में, सम्वेदना में या
हृदय की चेतना में
संघर्ष में, जुनूनों में
या हौसलों की उड़ान में
अपनी परछाइयांँ ढूंढने चला हूँ मैं
कोई बतलायेगा कि कहाँ जाना है मुझे
गीता में, क़ुरान में या
बाईबल के ज्ञान में
अज़ान में, ध्यान में
या बचपन की मुस्कान में
बहुत खूब ।
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Thank you
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