हाँ हम मजदूर हैं
हम अपने गाँवों से दूर हैं
भूख की आग ने कहाँ लेके फेंका
ख़ुदख़ुशी को मजबूर हैं
हाँ हम मजदूर हैं
शिक्षा से सुदूर हैं
परमात्मा ने क्यूँ ये खेल खेला
इँसानियत के हक़ से भी महरूम हैं
हाँ हम मजदूर हैं
बेबसी का गुरुर हैं
गरीबी का अभिशाप लिए हम
पूँजीपतियों के पैरों की धूल हैं
हाँ हम मजदूर हैं
बुनियादी जरुरतों से दूर हैं
खून पसीना से सींचा हमने भी देश को
फिर देश क्यूँ इतना क्रूर है
हाँ हम मजदूर हैं
हाँ हम मजबूर हैं
हाँ हम मजदूर हैं
हाँ कहाँ संघर्ष से दूर हैं ?